गाय और गाँव
मासिक
RNI TITLE CODE HAR 05145/07, JAN 2011/TC
वर्ष- 1, अंक- 1, वैशाख-ज्येष्ठ
वि.स.-2070, युगाब्ध-5115, मई 2013
प्रेरणा
ब्रह्मलीन पू.स्वामी भक्ति स्वरूपानन्द जी महाराज
मार्गदर्शन
महामण्ड. योगी यतीन्द्रानन्द गिरी जी महाराज
स्वामी सत्यदेवानन्द जी महाराज
स्वामी ब्रह्मचेतन जी महाराज
परामर्शदाता
डा. इन्द्रजीत यादव, श्री जयपाल सिंह सैनी,
श्री कन्हैयालाल आर्य,
श्री भानीराम मंगला, श्री त्रिलोकचन्द शर्मा
सम्पादक
अजय सिंहल
सम्पादक मण्डल
डा. सुरेश वशिष्ठ, राजेन्द्र शर्मा,
नरेन्द्र गौड़, पल्लवी मीलवाणी
प्रबन्ध समिति
कैलाश गर्ग,
नवीन कुमार सिंहल,
आशीष गर्ग
संवाददाता
बृजमोहन सैनी, रूड़की (उत्तरांचल)
प्रदीप लोहोमी, कोटा (राजस्थान)
आशीष जैन, पुणे (महाराष्ट्र)
कुलदीप जांघू (हरियाणा)
सज्जा
हरेन्द्र झा
कार्यालय
ई-1, राजेन्द्र पार्क, सण्डे मार्किट के पास,
गुड़गाँव-122001
दूरभाष-0124-6526572, 9312730415, 9212012474
अणुडाक: gaayorgaon@gmail.com
अन्तरदाना संस्करण - gaayorgaon.blogspot.in
सम्पादकीय
आदरणीय पाठक वृंद
देश की विदेश नीति पर चर्चा करना इस अंक में सार्थक
होगा। दो पड़ोसी देशों ने जिस प्रकार हमारा जीना हराम किया हुआ है। उसे देखकर लगता
है कि शायद या तो ये सब सहते रहने की हमारी आदत बन गई है,
या हम जानबूझ कर तमाशाबीन बने
है या फिर हमने कुछ करने का सामथ्र्य गंवा दिया है। एक तो पाकिस्तान में जिस
गुण्डई से 23 वर्षों से जेल में बन्द भारतीय नागरिक सरबजीत की हत्या का प्रयास
किया या यों कहें की हत्या की गई। (लिखे जाने तक पाकिस्तानी डाॅक्टर्स ने कहा है
कि बचने की उम्मीद नही है) भारत सरकार बस अपने वजूद का अहसास भर करा रही है।
दूसरे चीन के 19 कि.मी. से भी अधिक भारतीय सीमा में
घुस आने पर भी भारत सरकार जैसे चादर ताने सो रही है। कई बार तो लगता है कि सरकार
अपने पुरखों का ही अनुसरण कर रही है। गौरतलब है कि 1962 के युद्ध के पश्चात् जब
हजारों वर्ग मील भूमि चीन ने हस्तगत कर ली और विपक्ष ने ये मुद्दा संसद में उठाया
तो वर्तमान सरकार के प्रेरणा स्रोत प. नेहरू ने उस भूमि के बारे में कहा था कि वह
हमारे लिए उपयोग की नही थी। क्योंकि उस पर एक घास का तिनका भी नहीं उगता।
ये हाल तो नेहरू का तब था जब 7 नवम्बर 1950 को लिखे
एक पत्र में सरदार पटेल ने यह चेता दिया था कि चीन दोस्त नही है बल्कि दगाबाज देश
है। इस दस्तावेजी खत में पटेल ने अपनी आशंकाओं, आकलन और अनुमानों को तथ्य-तर्कों की जमीन भी दी। यह
साफ है कि उनके सुझावों पर गौर करने की न तो पहल हुई है और सम्भवतः देश के नेतृत्व को तत्कालीन स्थिति की गंभीरता
का जरूरी एहसास भी नहीं हुआ। यह खत ”अहा! जिंगदी“ पत्रिका ने अपने वार्षिक
विषेशांक में प्रकाशित किया है।
देश का अर्थसंकल्प प्रस्तुत हो चुका है। गौ व ग्राम
के लिए सरकार कुछ करेगी ऐसी हमें अपेक्षा भी नहीं थी। और कुछ प्रस्तुत भी नहीं
किया। बल्कि एक टीवी चैनल के अनुसार मनरेगा के तहत ग्रामीणों को उनकी दिहाड़ी के
भुगतान में किस तरह का बंदरबाट हुआ है। इस भ्रष्ट व्यवस्था ने हतप्रभ कर दिया है।
हरियाणा सरकार ने गौसेवा आयोग के गठन की अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना में
दिये गये प्रावधान स्पष्ट व संतोषजनक नहीं है। अधिसूचना के अनुसार ”गौधन संरक्षण कल्याण तथा पालन में निस्वार्थ रूप से
रत 6 गणमान्य मानवतावादी नागरिक“ जो आयोग के सदस्य होंगे। उपरोक्त नियम में ‘मानवतावादी शब्द बेमानी,
व अनावश्यक सा लगता है। ऐसा
लगता है कि जैसे यह शब्द किसी योजना के तहत शामिल किया गया हो।
चूँकि जो व्यक्ति गौ जैसे निरीह प्राणी के संरक्षण, कल्याण व पालन, सेवा में निस्वार्थ भाव से लगेगा वह मानवतावादी नहीं तो क्या होगा। शायद यहाँ भी सरकार तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादी खेल खेलने से बाज नहीं आ रहीं।
अच्छा तो यह होता कि हरियाणा की सरकार विधानसभा में बहुमत के आधार पर गौहत्या निषेध का कोई कड़ा प्रावधान राज्य में लागू करती।
गौहत्या देश का बड़ा मुद्दा है और हरियाणा के मेवात, पानीपत, अम्बाला, यमुनानगर जैसे जिलों में गौहत्या की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। गौहत्या निर्बाध जारी है।
मुझे तो लगता है कि सरकार ने गौहत्या के गम्भीर व असली मुद्दे से हटकर गौसेवा आयोग गठित कर अगले चुनाव का रास्ता भली प्रकार तैयार कर लिया है।
मैं गोपाल हूँ।
क्या आप गौपालन करते हैं?
यदि हाँ। तो अपनी गाय के साथ अपना अथवा परिवार का एक छाया चित्र हमें डाक अथवा
अणुडाक (Email)
द्वारा प्रेषित करें। साथ में अपना नाम पता व दूरभाष भी लिखें।
मैं गोपाल हूँ। इस शीर्षक के साथ हम आपका चित्र पत्रिका में निःशुल्क प्रकाशित करेंगे। आपका यह चित्र समाज को गोपालन की प्रेरणा देगा।
द्वारा ‘गाय और गाँव’ ई-1, राजेन्द्र पार्क गुड़गाँव- 122001
अणुडाकः (Email)-
gaayorgaon@gmail.com
पर्व पत्र
02 मई (वैशाख कृष्ण अष्टमी)
गुरु अर्जुन देव जयन्ती
05 मई (वैशाख कृष्ण एकादशी)
श्री बल्लभाचार्य जयन्ती
07 मई (वैशाख कृष्ण त्रयोदशी)
रवीन्द्र नाथ टैगोर जयन्ती
10 मई (वैशाख शुक्ल प्रतिपदा, अमावस्या)
सूर्य ग्रहण (भारत में दृश्य नहीं),
प्रथम स्वातंत्र्य समर दिवस
12 मई (वैशाख शुक्ल द्वितीया)
परशुराम एवं शिवाजी जयन्ती
13 मई (वैशाख शुक्ल तृतीया)
श्री मातंगी जयन्ती, अक्षय तृतीया
15 मई (वैशाख शुक्ल पंचमी)
आद्य शंकराचार्य जयन्ती
17 मई (वैशाख शुक्ल सप्तमी)
श्री गंगा सप्तमी
18 मई (वैशाख शुक्ल अष्टमी)
श्री बंगलामुखी जयन्ती
19 मई (वैशाख शुक्ल नवमी)
श्री सीता जयन्ती
23 मई (वैशाख शुक्ल त्रयोदशी)
श्री नृसिंह जयन्ती
24 मई (वैशाख शुक्ल चतुर्दशी)
श्री छिन्नमस्ता जयन्ती, कूर्म जयन्ती
25 मई (वैशाख पूर्णिमा)
बुद्ध पूर्णिमा
अनुक्रमणिका
सबके दाता राम
गाय का गोबर घरेलू उपयोग
गौभक्ति के फल
जैविक व रासायनिक खाद्य का तुलनात्मक अध्ययन
ऐसी सरकार बनाई है
गौ सेवा के लिए चोरी
सवा अरब पेट, सूखते खेत
हरियाणा में बना गौसेवा आयोग कितनी वास्तविकता?
जमालिया ग्राम को मिला राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार
अपने समाज की विशेषता
स्वामी विवेकानन्द जीवन गाथा
गोबर में भरते कला से प्राण
चरथावल (मुजफ्फरनगर) उ.प्र. में लिया गौ संवर्धन केन्द्र खोलने का निर्णय
इंजीनियर बना किसान
नमन 1857
किसी भी आलेख अथवा रचना की
जिम्मेदारी लेखक अथवा रचनाकार की होगी
संस्कार
सबके दाता राम
एक बार की बात है। बादशाह अकबर कहीं जंगल में शिकार
के लिये गये। साथ में बहुत आदमी थे, पर दुर्योग से जंगल में अकेले भटक गये। आगे गये तो एक खेत दिखायी दिया। उस खेत
में पहुँचे और उस खेत के मालिक से कहा- 'भैया! मुझे भूख और प्यास बड़ी जोर से लगी है। तुम कुछ खाने-पीने को दे दो। मैं
राज्य का आदमी हूँ।’ उसने कहा- ‘ठीक,
आप हमारे तो मालिक ही हो।’
यह कहकर उसने भोजन करा दिया।
खेत में ऊख (गन्ना) थी, ऊख का रस पिला दिया। आराम करने के लिये खटिया बिछा दी। इससे बादशाह बहुत राजी
हुआ। उसको ऐसा लगा कि ऐसा बढ़िया शर्बत मैंने कभी नहीं पिया। जंगल में रोटी भी बड़ी
मीठी लगती है फिर जिसमें भूख भी लगी हुई हो।
जब बादशाह वापिस जाने लगा तो उस किसान से कहा- ‘कभी तुम्हारे कमी पड़ जाय तो दिल्ली में आ जाना,
मेरा नाम अकबर है। किसी ने
मेरा नाम पूछ लेना।’ और फिर कहा- ‘कलम, दवात-कागज ला,
तुझे कुछ लिख दूँ।’
खेत में न कलम है,
न दवाद है,
न कागज है। खेत में रहनेवाला
बिचारा पढ़ा-लिखा तो था नहीं। फूटा हुआ मिट्टी का घड़ा था। वह सामने रख दिया और एक
कोयला ले आया। बादशाह ने घड़े की ठीकरी के भीतर में लिख दिया। वह बेचारा पढ़ा-लिखा
तो था नहीं। अकबर ने कहा- ‘मेरे से जब मिलने आओ, तब इसको साथ लेकर आ जाना।’ उसने कहा- ‘ठीक है’। उसने उस लिखे हुए घड़े के टुकड़े को रख दिया। कई
वर्षों तक पड़ा रहा।
जब अकाल पड़ा और अनाज कुछ हुआ नहीं,
तब बड़ी तंगी आ गयी। आपने लिये
अन्न और गायों-भैंसों के लिये घास तक नहीं रहा। दोनों के लिये पानी नहीं रहा। तब
स्त्री ने कहा- ‘राज्य का एक आदमी आया था
न? उसने कहा था कि आवश्यकता
पड़े तब दिल्ली आ जाना। उसके पास जाओ तो सही।’ स्त्री ने बार-बार कहा तो ठीकरा लेकर वह वहाँ से चला। दिल्ली में पहुँचा तो
लोगों से पूछा- ‘अकबरिये का घर यही है
क्या?
द्वारपालों ने डाँटकर कहा- कैसे बोलता है?
ढंग से बोला कर। वह तो अपनी
भाषा में सीधा बोला और उसने ठीकरी दिखाकर कहा- ‘जाकर कह दो एक आदमी आपसे मिलने आया हे।’
द्वारपाल चकरा गया कि बादशाह
स्वयं ने इस पर दस्तखत किये हैं। उसने जाकर कहा- ‘महाराज! एक ग्रामीण आदमी है असभ्यता से बोलता है।
बोलने का भी होश नहीं है। वह आपसे मिलना चाहता है।’ उसे बुलाया, बादशाह ऊँचे सिंहासन पर बैठा था। उसने देखकर कहा- ‘ओ अकबरिया! तू तो बहुत ऊँचे सिंहासन पर बैठा है।’
बादशाह ने कहा-‘आओ भाई! बैठो!’ उसे बैठाया और कहा- ‘तू थोड़ी देर बैठ जा। मेरी नमाज का समय हो गया है,
इसलिये मैं नमाज पढ़ लूँ।’
अब किसान देखता है कि उसने कपड़ा बिछाया है और वह उस
पर उठता है, बैठता है। अकबर ने जब
नमाज पढ़ ली और आकर बैठा तो उस किसान ने पूछा- ‘यह क्या कर रहे थे?’ बादशाह ने जवाब दिया- ‘परवर दिगार की बंदगी कर रहा था।’
किसान ने कहा- ‘मैं तो समझा नहीं।’ तो कहा-‘ईश्वर है न, यानी उस परमात्मा की
हाजिरी भर रहा था।’‘कितनी बार करते हो?’ ‘पाँच बार।’ ‘पाँच बार उठते बैठते हो। क्यों?’ ‘जिसने इतना दे रखा है उसकी हाजरी भरता हूँ।’
‘मैं तो एक बार भी हाजरी नहीं भरता हूँ,
फिर भी सब दे रखा है और दे रहा
है। तुम्हें पाँच बार करनी पड़ती है। अच्छी बात, जैरामजी की। अब जाता हूँ।’
ऐसा कहकर जाने लगा तो पूछा कि
क्यों आया था? ‘मेरी स्त्री ने कह दिया
था कि तुम दिल्ली जाओ तब आया और यहाँ तुमको देख, तुम तो पाँच बार नमाज पढ़ते हो। जब आपको परमात्मा से
मिला तो अब आपसे मैं क्या लूँ? मुझे कुछ करना नहीं पड़ता है तो भी वह परमात्मा मुझे देता है। अब तेरे से क्या
लेना है?’
‘अरे भैया, तुझे जो चाहिये सो ले ले’ बादशाह ने कहा-‘नहीं! इतनी मेहनत से तुम्हें मिली हुई चीज मैं मुफ्त में कैसे ले लूँ?’
एसे कहकर अपने घर चला आया।
स्त्री ने पूछा- ‘क्या हुआ?’ उसने कहा-‘अपने प्रभु को याद करो। जो सबका मालिक है,
वही सबको देता है। वह हमारा,
उनका,
सबका मालिक है। उसमें कोई
पक्षपात नहीं है। वह सबका है तो हमारा भी है। अब अपने उस राज्य के आदमी से क्या
माँगें? जो कि स्वयं भी माँगता
है। इसलिये भगवान् का भरोसा रखो, उनका नाम लो।’कई चोर मिलकर चोरी करने गये। बाहर उस किसान का घर था,
उसके पास वे चोर छिपकर रहे। उस
घर में वे दोनों पति-पत्नी आपस में बात कर रहे थे। स्त्री पति से बोली- ‘दिल्ली गये और कुछ लाये नहीं।’
तो उसने कहा-‘क्या लावें? हमारे पास कुछ था ही नहीं।’ ‘कुछ कमाते!’ इसपर पति ने उत्तर दिया-‘अब तो भगवान् देंगे तब ही लेंगे। भगवान् पर ही हमने
छोड़ दिया।’ ‘भगवान् पर छोड़ दिया तो
कुछ काम-धंधा तो करो।’ उसने कहा-‘काम-धंधा किये बिना भी
धन मिलता है, पर मैं लेता नहीं हूँ।
ठाकुरजी की मर्जी होगी तो घर बैठे भेज देंगे।’ इस प्रकार स्त्री-पुरूष आपस में बातचीत कर रहे थे।
उसने अपनी स्त्री को धीरज बाँधाते हुए कहा-‘अब वर्षा भी हो गयी है, खेती करेंगे, सब काम ठीक हो जायेगा।
कोई चिन्ता की बात नहीं है। मैं तो भगवान् के भरोसे रहता हूँ,
मैं लेता नहीं हूँ। भगवान् के
देने के बहुत तरीके हैं। छप्पर फाड़कर देते हैं।’
उसने कहा-‘सुन! आज की ही बात बताऊँ। मैं नदी किनारे गया। नदी में बाढ़ आ गयी। पानी बहुत
बढ़ गया, जिससे किनारा कट गया।
वहाँ शौच जाकर हाथ धोने लगा तो मेरे को दिखा, वहाँ कोई बर्तन है। ऊपर से रेत निकल गयी थी और ढक्कन दिया हुआ एक चरु पड़ा था।
उसको मैंने खोलकर देखा तो उसमें सोना-चाँदी, अशर्फियाँ भरी हुई थीं। बहुत धन था। मैंने विचार किया कि अपने तो यह लेना नहीं
है। ठाकुरजी स्वयं भेजेंगे तब लेंगे। पता नहीं यह किसका है?
इसलिये ढक्कन लगाकर मैं वापिस
आ गया।’ स्त्री ने पूछा कि ‘वह कहाँ पर कौन-सी जगह है?’
तो उसने सब बता दिया कि ‘ऐसे वहाँ एक जाल का वृक्ष है,
उसके पास में है?’
चोर इनकी बातों को सुन रहे थे। उन्होंने सोचा कि यह
किसान तो पागल है। अपने तो वहीं चलो और कहीं चोरी करेंगे तो कहीं पकड़े जायँगे,
धन वहाँ मिल ही जायेगा। वे
वहीं गये, जहाँ किसान ने हाथ धोये
थे। ढ़क्कन ढकते समय उस किसान से कुछ भूल हो गयी थी। ढक्कन कुछ खुला रह गया। उसके
जाने के बाद एक साँप आकर उस बर्तन के भीतर बैठ गया। ज्यों ही चोरों ने उसका ढक्कन
खोला कि साँप ने फुंकार मारी। उन्होंने जोर से ढक्कन बंद कर दिया। अब चोरों ने
विचार किया कि उस किसान ने हमको देख लिया होगा। हमें मारने के लिये ही उसने यह सब
बात कही थी। इस चरु में न जाने कितने जहरीले साँप-बिच्छू भरे हैं। इस चरु को उसके
घर में ही गिरा दो, जिससे ये साँप-बिच्छू उनको काटकर मार देंगे।
अब इस
चरु को बाँधकर उसी किसान के घर पर ले गये। वे दोनों सो गये थे। उन चोरों ने छप्पर
फाड़कर चरु उलटा कर दिया, जिससे
सारा माल घर में गिर गया और स्वयं आप भाग गये। ऊपर से पहले साँप गिरा, उस पर
सोने के सामान सहित व चरु गिरा। इससे साँप तो वहीं दबकर मर गया। इस प्रकार भगवान्
छप्पर फाड़कर देते हैं। सबेरे जब दोनों जगे और घर में देखा तो धन का ढेर लगा हुआ
है। अब किसीसे क्यों माँगे? भगवान्
का भरोसा रखता है, वह कभी
भी खाली नहीं जाता। भूखा रह सकता है, नंगा रह सकता है, लोगों में अपमान हो सकता है परंतु उसके मन में दुःख नहीं हो
सकता। जो भगवान् पर पूरा भरोसा रखता है, वह हर हालत में प्रसन्न रहता है।
पंचगव्य
गाय का गोबर: घरेलू उपयोग
देव
धूप बत्ती - 1 किलो
गोबर में- 50 ग्राम
नागर मोथा,
50 ग्राम
लाल चन्दन,
50 ग्राम
बुरादा देवदार एवं 50 ग्राम
चावल व 20 ग्राम
कपूर मिलाकर उससे बत्तियाँ बना लें। बत्तियाँ बनानें के लिए प्लास्टिक की सिरंग को
आगे से काट कर उसमें गोबर वाला मिश्रण भरकर दबाकर, बत्ती बाहर निकाल कर सुखा लें। प्रति दिन पूजा एवं मन को
शान्ति, वातावरण
शुद्ध करने में प्रयोग करें।
सरल स्नान साबुन बनाना -
सामग्री, गोबर 1 किलो, मुलतानी
मिट्टी 1 किलो, गेहूँ
चूर्ण 200
ग्राम, हल्दी
चूर्ण 50 ग्राम, सबको
मिश्रित कर धूप में सुखा लें, सूखने पर पीस पर चूर्ण बना लें तब नीम की पत्ती को 1 लीटर
पानी में पकायें। पानी ठण्डा कर छान कर इसे 100 ग्राम चूर्ण में मिलाकर आटे की तरह गूँथ कर इच्छानुसार आकार
में हाथ से टिकियाँ बना लें। प्रति दिन स्नान करने से त्वचा निखर जायेगी एवं कोई
चर्म रोग नहीं होगा।
JAI! --Maneesh
ReplyDelete